तरुण तकझरे, 'तरुण' की कविता , मैं कौन हूं, मैं मौन हूं।
एक प्रश्न जो यह गूंजता मैं कौन हूं , मैं मौन हूं।
उत्तर को मैं हुं खोजता, निरुत्तर सा सोचता ,
मैं कौन हूं, मैं मौन हुं।
देखता पलट पलट बिंम्ब में प्रतिबिंम्ब में।
दिखता नही हैं कुछ,
सिवाय इस शरीर के
ये शरीर मैं नही, मैं नही।
उत्तर मिला नही,
प्रश्न है खड़ा हुआ
जिद पर अड़ा हुआ
मैं मौन हु, मैं कौन हूं,
ढूंढता इधर उधर
छुपा है वो जाने किधर
मौन में ही मौन सा
वो तत्व है ये कौन सा
मैं शून्य में ही शून्य सा
मैं मौन हुं , मैं कौन हूं।
मैं मौन हुं , मैं कौन हूं।
रचियताः तरुण तकझरे 'तरुण'
खरगोन , मध्यप्रदेश
आप एक बहुत अच्छे गीतकार और लोकप्रिय एक्टर हैं