सुनीति त्यागी द्वारा रचितः जब कभी फुर्सत मिलेगी.....
जब कभी फुर्सत मिलेगी तो पास बैठेगें,
यही अरमान लेकर रोज जीता था
आया एक दिन ऐसा तूफान,
जिसका नाम कोरोना था।
मैं क्या, सभी को फुर्सत ही फुर्सत हो गई,
पर इस मुश्किल घडी में वह जो ख्याल था,
उसकी जरूर भी, अब कहीं खो गई।
रोज देखा, और सुना, कैसे जूझ रहे है लोग
रोज सुन सुन कर इस बात से सहम रहें है लोग,
एक देश से दूसरे देश, एक शहर से दूसरे शहर
एक दूसरे से, बिछड़ रहे हैं लोग,
आज ये आलम हैं, कब रुकेगा यह दरिया
इसी ख्याल में जी रहे है लोग।
इसी ख्याल में जी रहे है लोग।